Thursday, August 21, 2008

मारे गए फलाने जी

बात बढ़ी तो मारे गए फलाने जी।
चढ़ा-चढ़ी में मारे गए फलाने जी।

फूल के कुप्पा हुए जा रहे थे यूं ही,
आन पड़ी तो मारे गए फलाने जी।

धीर-वीर-गंभीर मुखौटा हटते ही
तड़ातड़ी में मारे गए फलाने जी।

सन् सैंतालिस से एके-47 थे,
एक छड़ी में मारे गए फलाने जी।

छोटी-छोटी में तो बात-बहादुर थे,
बड़ी-बड़ी में मारे गए फलाने जी।

मुर्ग-मुसल्लम में पूरी जिंदगी कटी,
दाल-कढ़ी में मारे गए फलाने जी।


2 comments:

Udan Tashtari said...

सही है!!

Anonymous said...

बहुत दिन बाद एेसा लगा कि नार्वी की गजल पढ़ रहा हूं। मुंहफट जी इस सिलसिले को जारी रखना।