Tuesday, September 2, 2008

धूमिल

एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूं--
'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है।

धूमिलकी अंतिम कविता जिसे बिना नाम दिये ही वे संसार छोड़ कर चल बसे ।

शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है या
मिट्टी में गिरे हुए खून
का रंग।

लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोडे से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।

1 comment:

Dr. Chandra Kumar Jain said...

मैं धूमिल की कलम का
मुरीद हूँ....यह प्रस्तुति जानदार है.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन