Monday, March 2, 2009

चुनाव के चिंकपोकली











गठबंधन का मतलब वे अकेले-अकेले दम पर अब चुनाव लड़ने से डर रहे हैं, इसलिए अपनी-अपनी पार्टी की शपथ खुद तोड़ते हुए हमारे वोट लूटने आ रहे हैं. वे गठबंधन कर इसलिए आ रहे हैं कि उन्हें सिर्फ चुनाव जीतने, सरकार बनाने की जरूरत है. सरकार बनेगी तो सरकारी खजानों की लूट और जनता की खसोट से वे पहले अपना चुनाव खर्च निकालेंगे, फिर अपनी कई पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित कर लेंगे. वे बात-बात पर एक दूसरे को गालियां देते रहते हैं, एक-दूसरे के गड़े मुर्दे खोदते रहते हैं लेकिन चुनाव के समय एक हो जाते हैं. गठबंधन कर लेते हैं. सच्चे लोकतंत्र के नेतृत्व के लिए गठबंधन न तो विकल्प है, न मजबूरी.


टिकट का विकट खेल हर पार्टी में चल रहा है. पार्टियों के जुझारू नेता हाशिये पर है. मालदार और माफिया हावी हैं. टिकट मालदारों और माफिया को इसलिए दिए जाते हैं कि मालदार प्रत्याशी वोट खरीद लेगा और माफिया प्रत्याशी डरा-धमकाकर वोट लूट लेगा. अब चुनाव ईमानदार और जनता के लिए, देश के लिए कुर्बानी का जज्बा रखने वाले नहीं लड़ते हैं. ज्यादातर चोर, कातिल लड़ते हैं. लोकसभा के आगामी चुनाव में भी उन्हीं बदमाशों का बोलबाला होगा.

मुद्दा इस चुनाव में भी जनता की ओर से नहीं, नेताओं और पार्टियों की ओर से तय किए जाएंगे. अर्थात महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी, मंदी, आतंकवाद मुद्दा नहीं होंगे. मुद्दा होंगे मंदिर, मस्जिद, मुस्लिम, हिंदू, सिख, ईसाई, दलित, सवर्ण, प्रधानमंत्री का पद. मतदाताओं के बीच ऐसे लोगों की तादाद अब न के बराबर बची है, जो पब्लिक के मुद्दे को ऐसे मौके पर जोरदार तरीके से उठाने के लिए आगे आएं. जिन्हें चुनाव में बढ़चढ़ कर जनता का पक्ष लेना चाहिए, वे मतदान के दिन वोट डालना भी अपनी हेठी समझते हैं. तो फिर सवाल उठता है कि जनता के मुद्दे की लड़ाई लड़ेगा कौन?






1 comment:

seema gupta said...

"हा हा हा मजेदार कार्टून और आलेख.."

Regards