Monday, March 2, 2009

प्यार के पांच पोर



प्यार क्यों! अपार प्यार! सुधि मिट जाने दो
उसकी सुहानी याद अब मत आने दो
मोह-ममता को बांध साथ प्रेम-पत्रिका के
बहती नदी में अब छोड़ो, बह जाने दो (ठाकुर प्रसाद सिंह)


दो लोग जो नफ़रत करते हैं
एक-दूसरे से
सोने को मजबूर होते हैं साथ-साथ.
यही वह जगह है
जहाँ नदियों से हाथ मिलाता है
अकेलापन. (अनामिका)

उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं
उन्हें कभी न बताना मैं उनकी आँखें हूँ
वो लोग फूल समझकर मुझे मसलते हैं. (बशीर बद्र)

ऋतु को फिर गुनगुने करने लगे हैं दिन.
चिट्ठी की पांती से खुलने लगे हैं दिन.
कत्थई गेंदे की
खुशबू से भींगी रातें,
हल्का मादल जैसे
लगी सपन को पांखें,
हाथ में हल्दी-सगुन करने लगे हैं दिन.
सांझ जलती आरती-सी हुई तेरे बिन. (शांति सुमन)

कामिनी-सी
अब लिपट कर सो गई है
रात यह हेमंत की
दीप-तन बन ऊष्म करने
सेज अपने कंत की
नयन लालिमा स्नेह-दीपित
भुज मिलन तन-गंध सुरभित
उस नुकीले वक्ष की वह छुवन, उकसन, चुभन
अलसित इस अगरू-सुधि से
सलोनी हो गई है रात यह हेमंत की
कामिनी-सी
अब लिपट कर सो गई है
रात यह हेमंत की. (गिरिजा कुमार माथुर)

8 comments:

शोभा said...

वाह वाह बहुत सुन्दर

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बधाई और साधुवाद! बहुत ही उम्दा संकलन है. अगर हों तो ठाकुर प्रसाद सिंह के कुछ गीत पढ़्वाएं.

seema gupta said...

उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं
उन्हें कभी न बताना मैं उनकी आँखें हूँ
वो लोग फूल समझकर मुझे मसलते हैं.

" शब्द नहीं कुछ कहने को...इस शेर ने निशब्द सा कर दिया है.....आभार इतनी सुंदर रचनाये प्रस्तुत करने के लिए...."

Regards

Udan Tashtari said...

आभार इन जबरदस्त रचनाओं का.

Unknown said...

बढिया सम्मिश्रण प्रस्तुत किया आपने । सभी बहुत ही सुन्दर कविताएं लगी । बधाई

Arvind Mishra said...

अपूर्व सुन्दर -रात यह हेमंत की !

अनिल कान्त said...

बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर .... ये पंक्तियाँ बहुत प्यारी थी ...


मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

रंजना said...

वाह !!!