Saturday, February 27, 2010

लोकसभाः होली बाद होगा जबर्दस्त हंगामा






(sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम से साभार)

दीदी के तेवर तने। विरोध प्रदर्शन का एलान।
लालू-मुलायम भी भाजपा के मोरचे पर।
माया ने मुंह खोला।
करुणानिधि ने पीएम को लिखी पाती।
यूपीए में बढ़ती दरार से पेट्रोलियम मूल्य-वृद्धि लौटने की संभावना!
होली से लौटते ही सदन में महाभारत की रणनीति।

महामुद्दा बना बजट। केंद्र सरकार के साथी-संघाती भृकुटियां चढ़ा लिए हैं। बहुत संभव है कि होली बाद सदन शुरू होते ही एकजुट विपक्ष भारी हंगामा कर सकता है। जिसका फिलहाल एक ही काट नजर आता है कि सरकार पेट्रोल मूल्यवृद्धि वापस लेने की घोषणा कर दे। कल एक ओर विपक्ष ने वॉकआउट किया, दूसरी तरफ रेलमंत्री ममता बनर्जी तमतमा कर कोलकाता रवाना हो गईं। अब तमिल संघाती करुणानिधि ने प्रधानमंत्री को करारी पाती भेज दी है। भीतर ही भीतर चिंगारी सुलगती जा रही है। भड़की तो कई नए नजारे सामने होंगे। यूपीए के आजू-बाजू कनमना रहे हैं। देश देख चुका है कि कल बजट पेश के दौरान किस तरह लालू, मुलायम, सुषमा स्वराज हाथ-में-हाथ डाले एकजुट विरोध कर रहे थे। सुषमा तो ठीक, लालू-मुलायम यूपीए के समर्थक पार्टी अध्यक्ष हैं। आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद कल ही कह चुके हैं कि पूरा विपक्ष एकजुट है। सोनिया सरकार तानाशाह की तरह बर्ताव कर रही है। मुलायम सिंह की सुनिए। कहते हैं कि इस मनमानी के खिलाफ विपक्षी पार्टियाँ संयुक्त अभियान चलाएँगी। उन्होंने नारे भी लगाए कि ‘जो सरकार निकम्मी है, वो सरकारी बदलनी है।’ तो इसके क्या मायने निकाले जाएं? इसलिए ममता के गुस्से को हल्के में नहीं लिया जा सकता। राज्यों से खबरें आ रही हैं कि एमपी के शिवराज सिंह चौहान, गुजरात नरेंद्र मोदी, बिहार के नितीश कुमार, उत्तरांचल के निशंक केंद्र के आम बजट पर तेवर कड़े कर लिए हैं। कोलकाता से माकपा-गठबंधन तो लाल हो ही रहा था, रही-सही कसर ममता पूरी करने की झलक दे चुकी हैं। ममता वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से बेहद खफा हो गई हैं। वजह है मालभाड़े पर सर्विस टैक्स। तृणमूल ने अपनी ही सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट के खिलाफ प्रदर्शन करने का एलान कर दिया है। प्रणब का आम बजट में रेलवे के माल ढुलाई पर सर्विस टैक्स में छूट न देना क्या कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में भारी पड़ सकता है, सवाल गूंजने लगे हैं। माकपा इस वाकये के पल-पल के हालात पर सावधान निगाहें रखे हुए है। उल्लेखनीय है कि बजट पेश होने से पहले विपक्षी ऐसे ही किसी अवसर की टोह में थे, सो लगे हाथ मिलता दिख रहा है। दीदी ने 24 फरवरी को रेल बजट में मालभाड़े में कोई बढ़ोतरी नहीं कर जो लोकप्रियता हासिल की थी, उसमें दादा ने पलीता लगा दिया है। दादा के खेल से रेल बजट की सांसत हो सकती है। यही दीदी की बड़ी चिंता है और तृणमूल की भी। तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंधोपाध्याय ने भी अपनी नाराजी साफ तौर पर जता दी है। उधर, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष करूणानिधि ने भी डीजल-पेट्रोल कीमतों में बढ़ोत्तरी पर आज पीएम की कुंडी जोर से खटखटा दी है। चिट्ठी लिख भेजी है कि पेट्रोलियम कीमत-वृद्धि रोकिए वरना आगे आप जानिए, आपका काम जाने, हमारा दोष न देना। हमारे सूबे की जनता बहुत नाराज है। चिट्ठी की एक प्रति करुणानिधि ने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी को भी भेजी है कि जरा अपने सिपहसालारों को समय रहते समझा लीजिए। संसद में जब कीमत वृद्धि का एलान प्रणब मुखर्जी कर रहे थे, आप भी वहां मौजूद थीं। आपके रहते ये क्या हो रहा है? क्या यह सह आपकी न जानकारी में हो रहा है? शायद नहीं! तेल की कीमतें बढ़ाने से हर चीज महंगी हो जाएगी। इस फैसले को तत्काल बदलिए। महंगाई का बोझ पहले से भी भारी-भरकम, ऊपर से 20 हजार करोड़ रुपये के टैक्स-भार और साथ में महंगे पेट्रोल डीजल की मार! ममता, मुलायम, लालू, करुणानिधि, मायावती, यानी कांग्रेस के साथी-संघाती। कोई घर में, कोई घर के बाहर से केंद्र सरकार का तरफदार। उधर कल से न्यूज चैनलों पर नमूदार हो रहे केंद्र सरकार के घरेलू सिपहसालार में पेट्रोलियम कीमतों में वृद्धि पर बाएं-दाएं झांक रहे हैं। लगे हाथ चौंकाने वाले बयान में दे डालते हैं। उनके बयानों से जो निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं, वे भी कम चौंकाने वाले नहीं कि क्या बढ़ते दबाव को देखते हुए सरकार पेट्रोलियम मूल्य-वृद्धि से हाथ खींच सकती है? आगे का यही सबसे बड़ा सवाल है! और इसी से जुड़ा अंदेशा साफ नजर आता है कि बजट पेश करने से पहले जो हंगामा महंगाई को लेकर लोकसभा के भीतर हो रहा था, चार मार्च को सदन शुरू होने के बाद वह विकट रूप धारण कर सकता है। भाजपा की यही मंशा है। भाजपा केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, पार्टी प्रवक्ता सिंघवी आदि के उन बयानों से और तिलमिला रही है कि बजट पेश के दौरान विपक्ष अपनी बात रखने की बजाय क्यों भाग खड़ा हुआ। यह चोट भाजपा ही नहीं, उन सब पर है, जो कल वॉकआउट कर गए थे। चार मार्च को सदन का माहौल क्या रुख अख्तियार करेगा, इस संबंध में अतीत के लोकसभा सत्रों से सहज ही कयास लगाया जा सकता है।

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