Sunday, February 28, 2010

अब जया बच्चन से सपा में खलबली, होली बाद कार्रवाई का अंदेशा गहराया!


(sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम से साभार)

.......लेकिन पार्टी कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पा रहीः मसले पर मंत्रणा तेजःहोली बाद कार्रवाई का अंदेशा गहराया

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यासी
हलकों से छन-छनकर एक महत्वपूर्ण सवालिया सूचना रही है कि समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सदस्य एवं अभिनेता अमिताभ बच्चन की धर्मपत्नी जया बच्चन के खिलाफ क्या कार्रवाई हो सकती है। सपा के भीतर इस बात को लेकर काफी हलचल है कि जया बच्चन ठाकुर अमर सिंह के साथ अब जनसभाओं में भी जा रही हैं। इससे पार्टी के खिलाफ गलत संदेश जा रहा है। कार्रवाई हो, हो, जया बच्चन की संसद सदस्यता को कोई खतरा नहीं है। अमर सिंह कहते हैं कि सपा में जया बच्चन के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं। सपा में इन दिनों अंदरूनी तौर पर खासकर वे लोग इस वाकये को तूल देने में व्यस्त हैं, जिन्हें अमर सिंह फूटी आंखों नहीं सुहाते। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं सांसद बृजभूषण तिवारी कहते हैं कि यदि जया अमर सिंह के लोकमंच पर नजर रही हैं तो निश्चित ही उन पर पार्टी कार्रवाई करेगी। साथ ही वह ये भी कह जाते हैं कि अमर के साथ पार्टी का एक भी ठाकुर नेता नहीं है। वैसे अमर सिंह के साथ जाने वाले नेताओं का स्वार्थ-परमार्थ दोनों खराब होना है। जबकि इससे पूर्व महासचिव मोहन सिंह ने जया बच्चन के बारे में कहा था कि वे कभी भी पार्टी के खिलाफ नहीं गई हैं और पार्टी से उनका काफी गहरा रिश्ता है। वे शालीन महिला हैं। जया बच्चन ने पार्टी के खिलाफ अब तक कुछ नहीं कहा है। मैं उनकी बहुत इज्जत करता हूं। पार्टी किसी के खिलाफ सिर्फ इसलिए कार्रवाई नहीं कर सकती कि किसी (अमर सिंह) से उनके पारिवारिक संबंध हैं। साथ ही वह कहते हैं कि अमर सिंह को नैतिकता के आधार पर राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे देना चाहिए। उस टिप्पणी के तत्काल बाद अमर सिंह ने कहा था कि जया बच्चन मेरे साथ हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई करने की सपा में हिम्मत नहीं है। उससे पूर्व जयाप्रदा के खुलकर अमर सिंह के साथ हो जाने से उन्हें भी पार्टी से निकाल दिया गया था। जयाप्रदा का कुसूर ये रहा था कि उन्होने पार्टी नेतृत्व से अपील की थी कि अमर सिंह को उनके विरोधी बदनाम कर रहे हैं तथा इसे रोका जाना चाहिए। मोहन सिंह पिछला आम चनाव हार गए थे और जब से वे महासचिव बने हैं, अमर पर लगातार हमले कर रहे हैं। अगर मोहन सिंह अमर सिंह के खिलाफ बयानबाजी करते रहे तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। एक प्रवक्ता कैसे अपने वरिष्ठ नेता के खिलाफ इस तरह से अपने पद का उपयोग कर सकता है। मैं मुलायम सिंह जी का आदर करती हूं। सपा में हम सभी के लिए वे पिता तुल्य हैं। मेरा कद पार्टी में इतना ब़डा नहीं है कि मैं इस विषय पर उनसे बात कर सकूं, इसलिए मैं उनसे अनुरोध करती हूं कि वे अमर के खिलाफ हो रहे हमलों को रोकें। जहां तक जया बच्चन की ताजा राजनीतिक सक्रियता का सवाल है, वह अमर सिंह के निष्कासन से काफी दुखी हैं और खुलकर उनका साथ दे रही हैं। भविष्य में इससे पार्टी को नुकसान होगा। वह कहती हैं कि सपा ने पार्टी से जुदा कर अमर सिंह के साथ गलत किया है। वह उनके साथ हैं। वह अप्रकट तौर पर मुलायम सिंह को चुनौती देते हुए कहती हैं कि मेरा इस तरह अमर सिंह के पक्ष में बोलना अनुशासनहीनता है तो वे मुझे भी पार्टी से निकाल दें। मैं इसके लिए तैयार हूं। यदि सपा अध्यक्ष चाहते हैं कि मैं इस्तीफा दे दूं तो उन्हें मुझसे ऐसा साफ-साफ कह देना चाहिए। जहां तक अमर सिंह को पार्टी से अलग किए जाने की बात है, कुछ लोगों ने मुलायम सिंह को ऐसा निर्णय लेने के लिए उकसाया दिया। मुलायम सिंह जी का अमर सिंह जी के प्रति काफी प्यार और स्नेह रहा है जो (अमर) अपने नेता (मुलायम) के लिए ढाल की तरह थे। उस ढाल को हटा दिए जाने से मैं चिंतित हूं। उल्लेखनीय होगा कि सपा जया को पार्टी से भले अलग कर दे, उनकी संसद सदस्यता को कोई विधिक खतरा नहीं है। पूरे कार्यकाल तक राज्यसभा सदस्य बनी रह सकती हैं। उल्लेखनीय ये भी होगा कि अमर सिंह कह चुके हैं, वह अमिताभ बच्चन के साथ उत्तर प्रदेश में कंप्यूटर लिटरेसी मिशन का अगाज कर रहे हैं। ये इस बात का संकेत है कि जया बच्चन के साथ सपा की मर्जी हो कर ले, वह अमर सिंह का साथ छोड़ने वाली नहीं हैं। उनके साथ जनसभाओं में खुली शिरकत से ये भी साबित हो जाता है कि सपा से अलग किए जाने का उन्हें रत्ती भर डर और चिंता नहीं है। इन सारी बातों के बावजूद यह सवाल बना हुआ है कि क्या जया बच्चन को भी सपा अमर सिंह और जयाप्रदा के रास्ते पर भेजने का साहस जुटा सकती है? यदि कार्रवाई होती है तो उससे फायदा किसका होगा, सपा का अथवा अमर सिंह का? जवाब साफ है, अमर सिंह का। जहां तक जया बच्चन के निष्कासन की बात है, उनकी हैसियत जयाप्रदा से कई मायनों में बहुत ज्यादा है, इसलिए निष्कासन का सपा को नुकसान और अमर का फायदा भी उसी अनुपात में होना है। सिपहसालारों की लाख बेचैनी के बावजूद शायद यही दुविधा मुलायम सिंह को जया बच्चन के खिलाफ कोई कदम उठाने से रोक रही है। मुलायम सिंह को बखूबी मालूम है कि जया बच्चन के खिलाफ कार्रवाई की तासीर कारपोरेट घरानों की नाराजी तक महसूस की जा सकती है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि उनकी छवि और सक्रियता का लंबे समय से सपा को राजनीतिक फायदा मिला है। सपा समाज, फिल्म जगत, राजनीतिक पटल पर जितनी शालीन बनी रहती हैं, उतना ही अनायास की सुर्खियों में भी। जून 2008 में उनके खिलाफ मुकदमा लखनऊ में मुकदमा तक दर्ज हो चुका है। उन पर आरोप था कि जून 2006 के राज्यसभा उपचुनाव के लिए दाखिल अपने शपथ पत्र में उन्होंने तथ्यों को छिपाया था। मामला राज्य विधानसभा सचिवालय प्रमुख आर.पी. पांडेय की ओर से दर्ज कराया गया, जो उस उपचुनाव के निर्वाचन अधिकारी थे। पाण्डेय ने लखनऊ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अखिल कुमार से बच्चन के विरुद्ध बाराबंकी जिले में उनके पति अमिताभ बच्चन के नाम पर एक भूखण्ड के बारे में तथ्यों को छिपाने के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था। पाण्डेय द्वारा यह कार्रवाई बाराबंकी निवासी अमीर हैदर द्वारा दायर याचिका के सिलसिले में चुनाव आयोग के निर्देश पर की गयी। संभव है होली बाद सपा जया बच्चन को लेकर किसी ठोस नतीजे पर पहुंच जाए, क्योंकि इस मामले को लेकर सपा सुप्रीमो खासकर आजमगढ़ की अमर सिंह की सभा के बाद पार्टी के भीतर भारी दबाव में हैं।

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