Sunday, March 28, 2010

रफ्ता-रफ्ता 'सांसद आडवाणी के बाद' की ओर बढ़ रही भाजपा !!



(sansadji.com)

भाजपा इन दिनों न्याय पालिका की चुनौतियों से दो-चार हो रही है। बाबरी ध्वंस मामले में बरेली के कठघरे से सांसद एवं पूर्व पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की घेरेबंदी और गुजरात में कांग्रेस के पूर्व सांसद हत्याकांड पर नरेंद्र मोदी से साढ़े नौ घंटे पूछताछ ने पार्टी के भीतर खलबली सी मचा रखी है, लेकिन पार्टी की आगामी रणनीति नए तूफानों का सबब बन सकती है। पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी की रणनीति तो कुछ ऐसे ही इशारे करती दिख रही है।

इस बीच एक पक्की खबर उमा भारती के यूपी बीजेपी प्रभारी के रूप में पार्टी ज्वाइन करने को लेकर नितन गडकरी की आगे की रणनीति भी उसी दिशा में लगती है। यानी पार्टी ने अब भी आडवाणी-मोदी हालात से कोई सबक नहीं लिया है। उल्लेखनीय है कि अयोध्या मामले में उमा भी उतनी ही सुर्खियों में रही हैं। सूत्रों के अनुसार पार्टी के भीतर से कोई नया अड़गा न लग जाए तो उमा भाजपा में लौटने के लिये तैयार बैठी हैं। पार्टी ने उच्च स्तर पर गंभीर विचार मंथन के बाद उन्हें दोबारा पार्टी में शामिल कराने का फैसला कर लिया है और अब इसकी औपचारिक घोषणा होना बाकी है। संभावना है कि अप्रैल में वह पुनः भाजपा की हो जाएंगी। भाजपा हाईकमान से ऐसा ठोस संकेत मिलने के बाद ही उमा ने कुछ दिन पहले खुद की बनाई भारतीय जन शक्ति पार्टी का अध्यक्ष पद ठुकरा दिया था। इस समय उमा भाजपा तथा संघ के वरिष्ठ नेताओं के साथ बराबर में सम्पर्क में हैं। बताते हैं कि पार्टी की ओर से उन्हें हिदायत दी गई है कि वो भाजपा ज्वाइन करने के संबंध में अभी मीडिया को बयान जारी न करें। इससे उनकी अगवानी मुश्किल में पड़ सकती हैं। गौरतलब होगा कि गडकरी की आगे की रणनीति हिंदू एजेंडे पर लौटने की है, और उसके लिए उन्हें नरेंद्र मोदी और उमा सरीखे नेताओं की तलब है। नरेंद्र मोदी के नाम वह भावी प्रधानमंत्री का शोशा छोड़ चुके हैं। उमा भी इच्छुक इसलिए हैं कि नई पार्टी बनाकर उनका सियासी जीवन अस्त होता जा रहा था। ऐसी सूचनाएं हैं कि उनको भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद देकर उत्तर प्रदेश का मुख्य प्रभार भी उन्हें सौंपने का मन बना चुकी है।
उधर, सांसद आडवाणी की सियासत को झकझोरने वाले बाबरी विध्वस मामले पर आईपीएस अंजू गुप्ता की सनसनीखेज गवाही के बाद के हालात का पार्टी रणनीतिकार कोई छोर तलाशने में जुटे हैं, लेकिन पार्टी के भीतर की 'नंबर वन' की प्रतिस्पर्द्धा कोई ठोस सियासी शक्ल अख्तियार करने नहीं दे रही है। संसद में आडवाणी की जगह सुषमा स्वराज ले चुकी हैं। अध्यक्ष पद पर गडकरी का आसन लग चुका है। आजकर सियासी हल्कों में ऐसी तेज खुसर-पुसर है कि नरेंद्र मोदी गडकरी की नजर में भाजपा के भावी प्रधानमंत्री हो सकते हैं, फिर आडवाणी के लिए आगे चिंतित होने या कुछ करने की जरूरत क्या है। फिलहाल तो राजग अध्यक्ष की कुर्सी ही उनके लिए काफी होगी।
वैसे इन दिनों भाजपा रणनीतिकार अंजू गुप्ता की आडवाणी विरोधी गवाही को खास तरजीह नहीं दे रहे हैं। उनका मानना है कि गुप्ता के बयान में कुछ भी नया नहीं है। पार्टी प्रवक्ता रामनाथ कोविंद कहते हैं कि यह अदालत का मामला है और वह अदालत पर टिप्पणी नहीं कर सकते हैं। सथ ही पार्टी का दावा है कि कानूनी रूप से अंजू गुप्ता के बयान की धज्जियां उड़ाने में उनके वकीलों को ज्यादा समय नहीं लगेगा। पार्टी के पास सबसे बड़ा हथियार गुप्ता का पहला बयान है जो उन्होंने विध्वंस के बाद 1993 की शुरुआत में दिया था। गुप्ता बतौर सुरक्षा अधिकारी आडवाणी के साथ अयोध्या गई थीं। सूत्रों के अनुसार, सीबीआई को दिए गए उस बयान में गुप्ता ने कहा था कि लालकृष्ण आडवाणी बाबरी विध्वंस के समय कारसेवकों को गुंबद से नीचे उतरने की बार-बार अपील कर रहे थे। मगर लिब्रहान आयोग को दिए बयान में गुप्ता ने इसमें फेरबदल कर दिया है। उनका कहना था कि आडवाणी कारसेवकों से नीचे उतरने की अपील तो कर रहे थे मगर उनकी चिंता कारसेवकों को चोट लगने को लेकर थी, न कि गुंबद को बचाने की। गुप्ता ने यही बात पिछले दिनों रायबरेली की अदालत में भी कही। भाजपा शुरू से गुप्ता के बयान में आई तब्दीली को केंद्रीय पुलिस सेवा के अधिकारी एसए रिजवी के साथ उनकी शादी से जोड़ रही है। ये भी पता चला है कि अंजू गुप्ता की गवाही पर जिरह के लिए भाजपा बड़े वकील लगा सकती है। पार्टी ऐसा भी सोच चुकी है कि इस मामले में पार्टी के ऐसे नेताओं का नाम जुड़ा है, जो भाजपा की भविष्य राजनीति के लिए बहुत अहम नहीं।
सूत्रों की बात पर यकीन करें तो अंजू की गवाही ने सबसे ज्यादा आडवाणी को परेशान कर रखा है। उन्हें पहले से सांसत में फंसी अपनी शिखर की राजनीति के आगे और कमजोर होते जाने का अंदेशा सता रहा है। अयोध्या कांड की नौवीं और महत्वपूर्ण गवाह डायरेक्टर कैबिनेट सचिवालय भारत सरकार व फैजाबाद की तत्कालीन एएसपी अंजू गुप्ता ने मामले की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट गुलाब सिंह की अदालत में घटना का जैसा विवरण पेश किया है, उससे आडवाणी और वाराणसी के मौजूदा सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी का परेशान होना लाजिमी भी है। अंजू गुप्ता ने अपनी गवाही में कहा है कि छह दिसंबर 92 को को सवा दस बजे आडवाणी रामजन्म भूमि परिसर में रामकथा कुंज के पास बने मंच पर पहुंचे। वहां डॉ. मुरली मनोहर जोशी, विष्णुहरि डालमिया, अशोक सिंघल, विनय कटियार, प्रमोद महाजन, उमाभारती, साध्वी ऋतंभरा, कलराज मिश्र, आचार्य धमेंद्र मिश्र व एससी दीक्षित समेत करीब अस्सी से सौ लोग मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन विनय कटियार कर रहे थे। आडवाणी ने मंच से सभा को संबोधित किया था, उनका भाषण बहुत जोशीला था। उन्होंने 2.77 एकड़ जमीन के बारे में कहा और बार बार दोहराया कि मंदिर वहीं बनेगा। समय लगभग 11.50 बजे के करीब दिन में पहली बार लोगों को विवादित ढांचे पर चढ़ते हुए देखा गया। ढांचे पर तोड़फोड़ देखने पर तत्काल कंट्रोल रूम को सूचना मुहैया करायी, लेकिन कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। ढांचा ध्वंस शुरू होते ही मीडिया पर आक्रमण शुरू हो गया। आडवाणी ने पूछा था कि गुंबद के अंदर क्या हो रहा है, इस पर मैने आडवाणी को वायरलेस कम्युनिकेशन के आधार पर बताया कि विवादित ढांचे के अंदर कारसेवक घुस गये और तोड़फोड़ कर रहे हैं। गुंबद से लोग गिर रहे हैं। जब गुंबद गिर रहे थे, ढांचा टूट रहा था, उस समय नेता खुश हो रहे थे। वे एक-दूसरे को गले लगा रहे थे। मिठाइयां बँट रही थीं। जश्न का माहौल था और कारसेवकों को प्रेरित किया जा रहा था। उमाभारती व ऋतंभरा बहुत खुश थीं। वे लालकृष्ण आडवाणी व डा. मुरली मनोहर जोशी समेत अन्य नेताओं को गले लगा रहीं थीं, साथ ही मंच से लोगों को ध्वंस के लिए प्रेरित कर रहीं थीं। गुंबद गिरने के बाद लालकृष्ण आडवाणी राम कथाकुंज कार्यालय गये तथा बताया गया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से बात हो गयी है। अंजू ने दावा किया कि लालकृष्ण आडवाणी व डा. मुरली मनोहर जोशी के साथ राम कथाकुंज के कार्यालय में डीएम व एसएसपी की बंद कमरे में मीटिंग हुई।
इसके बाद समय लगभग ढाई से तीन बजे के करीब आबादी में कहीं-कहीं धुआं उठते हुए देखा। मंच से एससी दीक्षित पहला गुंबद गिरने के थोड़ी देर बाद मंच से बोले कि पुलिस पीएसी तथा प्रशासन का नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा जायेगा। इन्होंने कोई गैर कानूनी काम नहीं किया। उस दिन पुलिस की गाड़ियां कारसेवक तभी घुसने देते थे जब वे जय श्री राम के नारे का जबाब नारे से दिया करते थे। मंच से आचार्य धर्मेंद्र ढांचे की तरफ इशारा करते हुए भीड़ से कहते थे कि माननीय एससी की रोक निर्माण पर है, फिर वे लोगों से पूछते क्या हमने गलत किया। एससी के आदेश का उल्लंघन किया? जैसे-जैसे भजन होता रहेगा वैसे-वैसे हिंदुओं का कलंक ढांचा टूटता चला जायेगा। जब ध्वंस हो रहा था तब मंच से साध्वी ऋतुभरा ने लोगों से कहा कि एक धक्का और दो, विवादित ढांचा तोड़ दो। उमा भारती कई बार मंच से बोलीं कार सेवा ऊपर से नहीं नीचे से करो जल्दी हो जायेगा। भाजपा के मौजूदा सांसद विनय कटियार ने लोगों से कहा कि वे वहां से वापस न जायें क्योंकि अभी काम पूरा नहीं हुआ है। मंच पर मौजूद किसी नेता को तोड़फोड़ रोकने का प्रयास करते नहीं देखा। गवाही पूरी न होने के चलते विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट ने मामले में शेष साक्ष्य के लिए 23 अप्रैल की तिथि नियत कर दी। बचाव पक्ष की ओर से हाजिरी माफी का प्रार्थना दिया, जिसे न्यायालय ने सिर्फ आज तक के लिए स्वीकार किया। यहां उल्लेखनीय होगा कि आडवाणी पहले कई बार सफाई दे चुके हैं कि वह ढांचा नहीं गिराना चाहते थे और अयोध्या में वह भीड़ को ढांचा गिराने से रोकने का प्रयास कर रहे थे लेकिन भीड़ में उनकी आवाज गुम हो गई।

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