Thursday, March 18, 2010

सांसद शत्रुघ्न भी 'टीम गडकरी' से नाखुश


(sansadji.com)

बिहार
की पटना साहिब लोकसभा सीट से भाजपा सांसद एवं अभिनेता शत्रुघन सिन्हा ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी की नयी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की आलोचना करते हुए कहा है कि कुछ काबिल लोगों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। पदाधिकारियों की घोषणा होने के दो दिन बाद सिन्हा ने आज इस बात को खारिज कर दिया कि वह किसी पद के लिए दावेदार थे लेकिन उन्होंने कहा कि पार्टी के दिग्गज और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को टीम में शामिल किया जाना चाहिए था। शत्रुघ्न कहते हैं कि निकट भविष्य में बिहार विधानसभा के लिए होने वाले चुनाव पार्टी के लिए बहुत निर्णायक हैं, फिर भी यशवंत सिन्हा जैसी काबिलियत वाले नेता को टीम से बाहर रखा गया है। कुछ योग्य लोगों की जगह पर ऐसे लोगों को टीम में लिया गया है, जिन्हें छोड़ा जा सकता था। मेरी मित्र और विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज एवं कुछ अन्य शीर्ष नेताओं के परामर्श के बिना टीम का गठन किया गया। एक वरिष्ठ और परिपक्व नेता होने के नाते मैं कोई भी टिप्पणी करके पार्टी का अनुशासन नहीं तोड़ना चाहता लेकिन मैं कार्यकारिणी के गठन को लेकर चिंतित हूं और काफी हद तक नाखुश भी हूं। उधर इस बार भाजपा अध्यक्ष गडकरी ने अपनी टीम में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को ऊंचाइयां देकर अन्य के लिए थोड़ी दुश्वारी पैदा कर दी है, जिनमें राज्य के कई सांसदों के भी नाम लिए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में वरुण गांधी की ओहदेदारी से कई बड़े विदक रहे हैं। भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में महासचिव बनने और वसुंधरा के राजनीतिक विपक्ष को महत्व नहीं मिलने से यह साफ हो चुका है कि भाजपा आलाकमान राजस्थान की राजनीति में फिलहाल उन्हें ही महत्व दिए जाने के पक्ष में है। वसुंधरा राजे जहां खुद महासचिव बनने के साथ ही अपनी निकटस्थ किरण माहेश्वरी को सचिव बनाने में सफल रही। वहीं कई सालों से राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पद पाते रहे पूर्व राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रामदास अग्रवाल,पूर्व महासचिव ओमप्रकाश माथुर, जसकौर मीणा, कैलाश मेघवाल को इस बार कोई पद नहीं मिला। इनमें से अग्रवाल और माथुर को केवल कार्यकारिणी सदस्य बनकर ही संतोष करना पड़ा। भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की वजह से राज्य विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता पद से इस्तीफा देने वाली वसुंधरा राजे ने इस्तीफा देते समय यह शर्त रखी थी कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उनके समकक्ष अथवा उससे आगे कोई पद नहीं दिया जाएगा। इसी कारण राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा विरोधी सांसद और पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कैलाश मेघवाल, ललित किशोर चतुर्वेदी,जसकौर मीणा,घनश्याम तिवाड़ी को कोई पद नहीं मिला। तिवाड़ी को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में शामिल किया गया है और वह भी राज्य विधानसभा में प्रतिपक्ष के उप नेता के तौर पर। अपने समकक्ष पद किसी दूसरे नेता को नहीं दिए जाने की वसुंधरा की जिद के कारण ही उनके निकटस्थ माने जाने वाले ओमप्रकाश माथुर और रामदास अग्रवाल को भी इस बार महासचिव एवं कोषाध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा। अग्रवाल तो समीकरणों की राजनीति में माहिर माने जाते है इसी के चलते वे पिछले कई सालों से पद पाते रहे है। वहंीं माथुर भी दिल्ली की राजनीतिक सौदेबाजी में माहिर समझे जाते है। वसुंधरा के निकट होने के बावजूद उनकी जिद ने इन दोनों को पद पाने से रोका। कार्यकारिणी सदस्य के रूप में शामिल किए गए ओंकार सिंह लखावत एवं मानवेंद्र सिंह ही एकमात्र ऐसे नेता है जो आरएसएस अथवा वसुंधरा विरोधी खेमे के प्रतिनिधि के रूप में शामिल किए गए हैं। सरकारी नौकरी छोड़कर पहली बार सांसद बनने वाले अर्जुन मेघवाल, गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला सहित अपनी पसंद के तीन नेताओं को कार्यकारिणी सदस्य बनवाने में वसुंधरा राजे सफल रही। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में हुए पदों के वितरण से साफ नजर आता है कि भाजपा आलाकमान वसुंधरा राजे को ही प्रदेश की राजनीति में पकड़ वाला नेता मानता है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी के गठन में वसुंधरा की बात को महत्व मिलने से यह साफ नजर आ रहा है कि राज्य विधानसभा में खाली चल रहे प्रतिपक्ष के नेता पद पर भी उन्हीं की मर्जी के नेता की ताजपोशी होगी।

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