Tuesday, March 9, 2010

सपा से जुड़े अतीत पर शर्मिंदा हैं अमर





यूपी से उत्तरांचल तक सपा विरोधी सियासी जमीन की तलाश।
यूपी में मथुरा, एटा, आज़मगढ़, वाराणसी, हरदोई, शाहजहांपुर, गोरखपुर, बरेली एवं रामपुर के बाद अब अमर की बलिया, जौनपुर एवं देवरिया की जनसभाओं की तैयारी





अमर सिंह ने गत दिनों देहरादून के डीएवी कॉलेज में राहुल सांकृत्यायन एवं सेनानी वीरचंद्र सिंह गढ़वाली की याद दुहराने के बहाने समाजवादी पार्टी और अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव पर एक बार पुनः प्रहार तेज करते हुए कहा कि अब तक मैं ऐसी पार्टी में रहा, जिसके राज में रामपुर तिराहा कांड हुआ। उत्तराखंड की मातृशक्ति के जमकर अत्याचार, अनाचार हुआ। ऐसी पार्टी में मैंने 14 साल तक वनवास भोगा। उस पर मैं अब शर्मिंदा हूं। इसके लिए मैं उत्तराखंड की मातृशक्ति से क्षमाप्रार्थी हूं। सपा छोड़कर मैंने वनवास से मुक्ति पा ली है। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि मेरे गृहजनपद आजमगढ़ से गढ़वाल का पुराना जुड़ाव रहा है, इसी नाते यहां से मेरा भावनात्मक जुड़ाव है। वह बताते हैं कि उत्तराखंड के चमोली जिले के बपोली में जन्मे एचएच बद्रीप्रसाद चमोला की पत्नी आजमगढ़ के मूल निवासी भोला पांडेय महाराज की बेटी थीं। वही बद्री प्रसाद, जो 1929 से 1936 तक फीजी देश के प्रधानमंत्री रहे थे। अमर सिंह ने उत्तरा खंड के रामपुर तिराहा कांड का अपने संबोधन में जिक्र कर दो निशाने एक साथ साध लिये। तिराहा कांड के बहाने उन्होंने वहां के लोगों की दुखती रग पर हाथ रखने की कोशिश की, साथ ही सपा के खिलाफ इस प्रदेश में भविष्य की राजनीतिक संभावनाओं को एक नया तर्क ढूंढ लिया है। उल्लेखनीय है कि जब रामपुर तिराहा कांड हुआ था, यह क्षेत्र उस समय यूपी का अविभाज्य हिस्सा था और उत्तर प्रदेश में उस समय मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। वह रामपुर तिराहाकांड, जिसे याद कर आज भी लोग सिहर जाते हैं। उस समय पूरा पहाड़ी अंचल थर्रा उठा था। आज भी उस घटना से जुड़े मामलों की सीबीआई जांच चल रही है। उन्हीं में एक है सीबीआई बनाम ब्रजकिशोर मामला। एक अक्टूबर, 1994 की रात अलग उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर गांधी जयंती पर धरना प्रदर्शन करने जा रहे उत्तराखंडियों को मुजफ्फरनगर में रामपुर तिराहा के पास स्थानीय प्रशासन ने आगे बढऩे से रोक दिया था। शासन के आदेश पर हुई इस कार्रवाई का बसों में सवार उत्तराखंडियों ने जब विरोध किया तो पुलिस की ओर से जबरदस्त फायरिंग हुई, जिसमें कई उत्तराखंडी मारे गए और कई घायल हुए। मुजफ्फरनगर पुलिस पर उत्तराखंडी महिलाओं के साथ दुराचार करने के भी आरोप लगे थे। उत्तराखंड में सपा पर निशाना साधने के साथ ही अमर सिंह इधर दिल्ली में भी महिला आरक्षण बिल के बहाने सपा की खबर लेने से नहीं चूके। सपा के पूर्व महासचिव ने यहां कहा कि कोई चाहे या चाहे, महिला आरक्षण विधेयक अब राजनैतिक अपरिहार्यता बन चुका है। उन्होंने इस महत्वपूर्ण आरक्षण विधेयक का विरोध करने वालों से अपील की है कि वे नारी-शक्ति और मातृशक्ति को आक्रोशित करें, बल्कि सृष्टि के इस सुंदर घटक का सम्मान करें। उन्होंने अपने ब्लॉग पर लिखा कि नीतीश कुमार भी लालू प्रसाद, मुलायम सिंह और शरद यादव की तरह मंडल राजनीति की उत्पति हैं, लेकिन बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री में बदलते परिदृश्य में इस राजनैतिक अपरिहार्यता की अनोखी समझ है, लेकिन समाजवादी पार्टी में खुली आलोचना का अवसर देने की प्रक्रिया का अंत हो गया है। वह लिखते हैं कि '' पता नहीं आजकल मेरी पुरानी पार्टी को क्या हो गया है? परिवर्तन जीवन का अंग है. एक परिधि से दूसरी परिधि में जब व्यक्ति अथवा दल की उत्तरोत्तर वृद्धि की पद्धति आरम्भ होती है तो हर परिधि के साथ दल, नेता, नीति का समन्वय होता है और उसी के साथ-साथ परिवर्तन. पिछले चौदह वर्षों से मै दल में एक प्रणाली की स्थापना करने की बात कर रहा हूँ जिसके तहत यदि सामूहिक नेतृत्व ना भी हो तो कम से कम सामूहिक चर्चा तो हो जाए. आगरा जाते समय वायुयान में मुझे एक बार रामजीलाल सुमन एवं मोहन सिंह जी ने दल में सामूहिक विचार विमर्श की प्रक्रिया के नितांत आभाव के सन्दर्भ में श्री मुलायम सिंह जी के नेतृत्व की प्रक्रिया की परोक्ष आलोचना की थी. मैने जैसे ही श्री मुलायम सिंह जी को इस बारे में अवगत कराया, उन्होंने श्री जनेश्वर मिश्र के निवास पर एक बैठक आहूत कर एक खुली आलोचना का अवसर दल के सभी सांसदों को दिया. कालांतर में इस प्रक्रिया का दल में अंत हो गया एवं परिवार बैठ कर नीतिगत राजनैतिक निर्णयों पर पार्लियामेंट्री बोर्ड की मोहर लगवाने लगा. अपनी बीमारी के दौरान सिंगापुर के रास्ते में मैने श्री मुलायम सिंह जी से कई मुद्दों पर लम्बी चर्चा की. चर्चा अनंत और अंतहीन व्यर्थता में समाप्त हो गयी. श्री नितीश कुमार, श्री लालू यादव, श्री मुलायम सिंह यादव एवं श्री शरद यादव सभी मंडल की राजनीति की उत्पत्ति है पर नितीश जी ज़रा अलग-थलग और महीन इसलिए है कि राजनीति के बदलते परिद्रश्य में राजनैतिक अपरिहार्यता की अनोखी समझ उनमे है. वामपंथ की बैसाखी से राजनीति को अग्रसित करने वाले स्वप्नद्रष्टा चंद्रबाबू नायडू जी से मित्रता के नवीनीकरण की आधारशिला पुनः रखने की आकांछा रखने वाले मेरे भूतपूर्व नेता अलग-थलग पड़ गए और सदन की गरिमा के प्रतिकूल राजनैतिक दुराचरण की पराकाष्ठा पर पहुँच कर यूपीए से समर्थन वापस करने का एलान कर डाला. संभवतः उनसे अधिक यह तथ्य मेरे संज्ञान में है कि समाजवादी संसदीय दल के काफी सदस्य दल की मुद्दाविहीन, दयनीय, लचकती हुई नाजुक सियासत से बेजार वर्त्तमान सरकार को गिराने की जगह वक्त पड़ने पर स्थायित्व देने का काम कर सकते है. दुर्भाग्यवश उत्तर प्रदेश श्री राहुल गांधी देख रहे है और इसी कारण कांग्रेस का कोई प्रबंधक उत्तर प्रदेश के मामले में पड़ना नहीं चाहता और लगातार भ्रमणशील और व्यस्त राहुल जी की अनुपलब्धता और लगातार अवसान पर जा रही समाजवादी दल की कमजोरी का लाभ बसपा उठा रही है. मुझे स्वयं डर है कि मेरी स्वाभिमान की लड़ाई का निश्चित नुकसान सपा को तो है लेकिन इसका ठोस लाभ निश्चित विकल्प के आभाव में कही बसपा को ना मिल जाए. मथुरा, एटा, आज़मगढ़, वाराणसी, हरदोई, शाहजहांपुर, गोरखपुर, बरेली एवं रामपुर के बाद अब बलिया, जौनपुर एवं देवरिया की जनसभाओं की तैयारी में जुटा हूँ. तुम्हारा बच्चा पढ़े विदेश में गरीब का बच्चा तरसे इस देश में, पूर्वांचल में गावों के बच्चो पढो-लिखो और बड़े बनो, अंग्रेजी और कंप्यूटर गाँव के बच्चे भी महानगरीय स्तर पर जाने, इन कार्यक्रमों की मूर्त रूपरेखा बनाने में जुटा हूँ. उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है, पूरी फरवरी गई, पूरा मार्च जाएगा,शायद आधा अप्रैल भी, तब शायद जा कर आवामी नब्ज का बोध हो पाएगा. आखिर जल्दी क्या है? उत्तर प्रदेश को जातीय समीकरणों में अति पिछड़े, सवर्णों एवं मुस्लिम भाइयों के समन्वय से एक नई दिशा दी जा सकती है. ज्यादा ना जानने पर भी पता नहीं क्यूँ राहुल अपने लक्ष्य के प्रति संवेदनशील लगते है, लेकिन जाने कहाँ बहुत ही व्यस्त रहते है.देश के शीर्षस्थ मूर्धन्य यादव नेतृत्व द्वारा महिलाओं में जातीय एवं धार्मिक आधार पर कोटे में कोटे की बात का बड़ा ही सुन्दर उत्तर महान कवि श्री जयशंकर प्रसाद जी नेकामायनीमें दिया है। .................हे यादव नेत्रवृन्द कृपया अवयव एवं श्रृष्टि की सुन्दर कोमलता से दुर्बल हो चुकी मात्रिशक्ति एवं नारी शक्ति को व्यर्थ में क्रुद्ध ना करें, लगता तो यह है कि महिला आरक्षण बिल आप चाहे ना चाहे, अब राजनैतिक अपरिहार्यता का प्रतीक हो चुका है।'' (ब्लॉग सामग्री साभार blog.thakuramarsingh.com से साभार)

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