Saturday, April 17, 2010

थरूर 'बम' हैं, फटेंगे या फुस्स होंगे, पीएम का इंतजार!


sansadji.com

अब 'थरूर का मतलब सिर्फ थरूर' नहीं रह गया है। मामला निर्णायक रुख ले चुका है। ललित मोदी के निशाने पर रख मामले को कार्रवाई के अंजाम तक ले जाने की कोशिशों से ये साफ संकेत दिया जा चुका है कि विदेश राज्य मंत्री थरूर बार-बार इसी तरह के मसले ला-लाकर केंद्र सरकार के लिए सिरदर्द बन जा रहे हैं। अब इस दर्द का इलाज कर ही दिया जाए।
यानी मान लीजिए कि थरूर जा रहे हैं। सूत्रों पर भरोसा करें तो सरकार ने थरूर के कारण अपनी इतनी किरकिरी करा ली है कि उन्हें अब और झेलने के पक्ष में नहीं। लेकिन सरकार के सामने कुछ बड़े सवाल हैं, जिनका जवाब आज पीएम के साथ होने वाली कांग्रेस के बड़ों की संभावित मीटिंग में ढूंढा जा सकता है। सवाल ये हैं कि थरूर के खिलाफ कार्रवाई कर दी जाए तो भी क्या विपक्ष परमाणु क्षतिपूर्ति विधेयक, साझा कटौती प्रस्ताव, महिला आरक्षण विधेयक आदि पर सरकार की मुखालफत से बाज आ सकता है? .......(कत्तई नहीं)। थरूर के खिलाफ कार्रवाई के बाद मीडिया क्या इस तरह के प्रचार से कांग्रेस को बख्श देगा कि भ्रष्टाचार, सुनंदा-संबंधों के कारण विदेश राज्य मंत्री पर स्कैंडल की गाज गिरी? थरूर विदेश राज्य मंत्री हैं, निश्चित ही कार्रवाई की गूंज पूरी दुनिया में होगी। यानी पूरी दुनिया में थू-थू होगी। जब सामने से असंख्य विपक्ष-समर्थकों की सेना महंगाई आदि मसलों पर सरकार को, संसद को घेरने की युद्धस्तरीय तैयारी में जुटी हो, ऐसे में अपने ही एक विदेश-मोरचे के कनिष्ठ नायक को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा देना समझदारी की बात होगी? यद्यपि इन सारे सवालों के जवाब हैं भी, नहीं भी हैं। हैं का मतलब, कार्रवाई करना बड़ी बात नहीं, कार्रवाई के बाद भी विपक्ष की ओर से जिन मुश्किलों का सामना सरकार को करना है, वे तो बनी ही रहेंगी। फिर? फिर क्या, प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह आज आ रहे हैं। आ गए तो बैठक में ये भी गुफ्तगू का विषय होगा कि केंद्र पर नक्सलवादियों से मिली-भगत का आरोप तक विपक्ष लगाने लगा है। सोनिया गांधी कल वह विरोध झेल चुकी हैं। यानी सरकार थरूर से उतना परेशान नहीं, जितना कि विपक्ष से। पहले उसे विपक्ष के मोरचे का जवाब देना है, थरूर को तो कभी भी देख लिया जाएगा। फिर मीडिया अटकले हैं कि 'कांग्रेस ने संकेत दे दिया है। विदेश राज्य मंत्री के लिए सब कुछ ठीक नहीं। भाग्य प्रधान मंत्री के हाथों में है। प्रधानमंत्री आ रहे हैं। गेंद प्रधानमंत्री के पाले में है। कोच्चि आईपीएल टीम के स्वामित्व विवाद की सूचनाएं जुटा चुके हैं। बस फैसला होना बाकी है। विपक्ष थरूर के इस्तीफे की मांग पर अड़ा है। सोनिया गांधी से थरूर की मुलाकात निरर्थक रही है। थरूर को सोनिया से अभयदान नहीं मिला है। अपना नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा है कि थरूर पार्टी के लिए एक बम हैं।' आदि-आदि। देखिए 'बम' का क्या होता है, फटता है, कांग्रेस फोड़ती है या फुस्स कर देती है!!

2 comments:

विवेक सिंह said...

दुधारू हैं तो दो लात भी सहनी पड़ेगी । दूध देना बंद कर दिया तो बात अलग है ।

honesty project democracy said...

THROOR JAISE LOGON KO HAR HAL MAIN FUSS HI HONA CHAHIYE.PATA NAHI MANTRALAY MAIN BAITHKAR YE LOG KAISE KAISE SOCH KO ANJAM TAK PAHUNCHATE HAIN.SARMNAK HAI AESI STHITHI.